दया और रहमत का पैगंबर
दया और रहमत का पैगंबर
दया और रहमत का पैगंबर
(मोहम्मद बिन अब्दुल्ला – (अल्लाह का दरूद व स्लैम हो उन पर)
अल्लाह पाक कुरआन शरीफ़ में कहता है: – और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको सारे दुनिया जहाँन के लोगों के हक़ में अज़ सर ता पा रहमत बनाकर भेजा (अल अंबिया: 107)
इस का अर्थ है: हमने उन लोगों के लिए आप को केवल दया के रूप में भेजा है। अल्लाह जो सर्वशक्तिमान है, वह कहता है: और बेशक तुम्हारे एख़लाक़ बड़े आला दर्जे के हैं (अल क़लम: 4), इस का अर्थ है: और वास्तव में, आप एक महान नैतिक चरित्र के हैं।
पैगंबर मुहम्मद अपनी युवावस्था से ही ईमानदारी और निष्ठा तथा विश्वास के लिए प्रसिद्ध थे, और क्यों न हो; अल्लाह ही है जिसने उसे मानवीय पूर्णता को बनाए रखने के लिए पैदा किया था, और सभी नबियों ने संयुक्त रूप से, सबसे पहले, उनमें से आखिरी, मुहम्मद, (अल्लाह का दरूद व स्लैम हो उन पर) जिसे मानवता के लिए दया और प्रेम के साथ भेजा गया था। ताकि यह मानवता अपने जीवन काल में और अपनी मृत्यु के बाद उन्हें दया और प्रेम की यह खुशी मिलती रहे। पैगंबर (मोहम्मद बिन अब्दुल्ला – (अल्लाह का दरूद व स्लैम हो उन पर) अपने परिवार के साथ अच्छे नैतिकता के शीर्ष पर थे। उन्हों ने अपने साथियों से कहा, की तुम्हारा सबसे अच्छा अपनी पत्नी के लिए तुम बनो, और मैं अपनी पत्नी के लिए सबसे अच्छा हूँ। मुहम्मद, (अल्लाह का दरूद व स्लैम हो उन पर) अपनी पत्नी के साथ उन के काम में हाथ बटाते थे। वह अपनी पत्नी हज़रत आइशा के साथ दौड़ लगाते थे, एक बार वह उन से जीत गए, पर दूसरी बार वह जीतीं। वह नैतिकों में विनम्र थे, कमजोरों के साथ बैठते और उन्हें सम्मान देते थे, और यदि आप (अल्लाह का दरूद व स्लैम हो उन पर) का कोई साथी मर जाता और उस पर कोई ऐसा कर्ज होता जिसे उस का परिवार भुगतान नहीं कर सकता, तो वह कहते कि मैं उसका कर्ज चुकाता हूं, और मैं इसका भुगतान करूंगा। वह बच्चों के प्रति बहुत दयालु थे, और वह उन्हें दुलारते, और रोगियों की ज़ियारत करते और उनसे उसकी स्थिति के बारे में पूछते थे।
आम जनता के साथ उन का व्यवहार बिलकुल उदार वाला होता था और उन का वह हमेशा अच्छी स्वागत करते, वह युवा पीढ़ी के लिए दयालु होते और बड़ों का सम्मान करते थे।
वह अपने लोगों में सहिष्णुता तथा सब्र का आदेश देते, संप्रदायवादी कट्टरता से रोकते, उन्हों ने शासकों को उनकी सुरक्षा बनाए रखने के लिए आज्ञाकारिता का आदेश दिया। वह लोगों को वही कार्य करने का आदेश देते जिन कार्यों दुवारा वे अल्लाह से करीब हो जाएँ, जैसा कि एक बार उन्हों ने अपने साथी से कहा:
अल्लाह के पास सबसे प्रिय वही हैं जो अन्य लोगों के लिए सबसे अधिक फायदेमंद होते हैं।
वह क़बीलों के बीच सुधार करते थे, और दोनों पक्षों में अलग-अलग दौरा करते, जब तक कि कई दुश्मनी दोस्ती और भाईचारे में बदल न जाये।
मानवता का अल्लाह के साथ संबंध का होना, यही है जो इस मनुष्य के निर्माण का आधार है।
जैसा कि सर्वशक्तिमान अल्लाह ने कहा:
और मैने जिनों और आदमियों को इसी ग़रज़ से पैदा किया कि वह मेरी इबादत करें (अल ज़ारियात:56)
खुद पैगंबर मुहम्मद (अल्लाह का दरूद व स्लैम हो उन पर) द्वारा परिभाषित इबादत के लिए यह कहा: – इबादत उन सभी के लिए एक ऐसा व्यापक नाम है जो अल्लाह के लिए कार्य तथा इबादत में से केवल वही करना जो उन्हें पसंद हो, और यही रिश्ता सभी मनुष्यों के लिए अनिवार्य है, और यही अल्लाह की किताब (कुरआन और हदीस) में विस्तृत है।
दुश्मनों के साथ उनका व्यवहार उन्हें बर्दाश्त करने और उनकी दुश्मनी को सहन करना होता था। पैगंबर मुहम्मद (अल्लाह का दरूद व स्लैम हो उन पर) के पड़ोस में एक यहूदी पड़ोसी रहता था, जो आप को हमेशा तकलीफ़ पहुंचाता था, और आप के रास्ते में कांटे डालता था, एक बार बहुत दिनों तक उस का परेशान करना और तंग करना बंद हो गया, तो पैगंबर उन के घर गए और उस का हाल चाल पुछा, तब आप को पता चला की वह बीमार है, तब इस यहूदी ने कहा, “कौन तुम्हें बताया कि मैं बीमार हूं?” पैगंबर ने कहा, “तुम्हारा कष्ट पहुंचाना रुक गया था, और मुझ को पता चला की तुम बीमार हो।
आप ने उन लोगों के साथ खुद के लिए कभी बदला नहीं लिया, जिन्होंने आप को चोट पहुंचाई या आप के खिलाफ कुछ ग़लत किया। एक बार एक यहूदी महिला ने आप के मांस वाले भोजन में जहर डाल दिया था। अल्लाह की ओर से आप को ख़बर मिली कि जो मांस तुम्हें यहूदी महिला ने दिया था और जिस को तुम ने खाया था, उस में जहर था, आप ने उससे पूछा कि तुम ने ऐसा क्यूँ किया? उसने कहा, मैंने ऐसा किया, यह देखने के लिए की यदि आप नबी हैं तो आप का रब आप को बता देगा और आप को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा, और यदि आप झूठे हैं, तो हम आपसे छुटकारा पा लेंगे। पैगंबर मुहम्मद (अल्लाह का दरूद व स्लैम हो उन पर) ने अपने साथियों से कहा, “इसे छोड़ दो, इसे नुकसान मत पहुंचाओ, क्योंकि मेरे रब ने मुझे बचा लिया है।”